प्रियतम की यादों से अलंकृत
उसकी पग-ध्वनि से आंदोलित
मन-वीणा की तारें झंकृत
होकर प्रिय को पास बुलातीं
आँखें तब आँसू भर लातीं
सांसारिक कार्यों से बोझिल
दिन भर हँसते हैं सबसे मिल
हृदय टूटता रहता तिल-तिल
रातें दाह और भड़कातीं
आँखें तब आँसू भर लातीं
खिली चाँदनी है अंबर में
दीप प्रकाशित हैं घर-घर में
लेकिन मेरे कातर उर में
दुख की अंधियारी गहराती
आँखें तब आँसू भर लातीं
उसकी पग-ध्वनि से आंदोलित
मन-वीणा की तारें झंकृत
होकर प्रिय को पास बुलातीं
आँखें तब आँसू भर लातीं
सांसारिक कार्यों से बोझिल
दिन भर हँसते हैं सबसे मिल
हृदय टूटता रहता तिल-तिल
रातें दाह और भड़कातीं
आँखें तब आँसू भर लातीं
खिली चाँदनी है अंबर में
दीप प्रकाशित हैं घर-घर में
लेकिन मेरे कातर उर में
दुख की अंधियारी गहराती
आँखें तब आँसू भर लातीं
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विकास कुमार गर्ग