मेरी कलम से

Thursday, December 9, 2010

एहसास

ज़िन्दगी बड़ी नागवार गुज़री है !क़रार पा के ये, बेकरार गुज़री है !!
गमों की शाम भी आई थी तसल्ली देने !करीब आके मेरे अश्क़बार गुज़री है !!
शम्मा की लौ में जलने की तमन्ना लेकर !तड़प – तड़प के सहर बार बार गुज़री है !!
शज़र उदास है,मौसम भी है धुआं – धुआं !नज़र चुरा के अबके बहार गुज़री है !!
मेरे क़ातिल मेरे मुंसिफ के इशारों पर !रिहाई मुझसे अब दरकिनार गुज़री है !!

हिन्दी

खुसरो के हृदय का उद्‌गार है हिन्दी ।कबीर के दोहों का संसार है हिन्दी ।।
मीरा के मन की पीर बन गूँजती घर-घर ।सूर के सागर - सा विस्तार है हिन्दी ।।
जन-जन के मानस में, बस गई जो गहरे तक ।तुलसी के 'मानस' का विस्तार है हिन्दी ।।
दादू और रैदास ने गाया है झूमकर ।छू गई है मन के सभी तार है हिन्दी ।।
'सत्यार्थप्रकाश' बन अँधेरा मिटा दिया ।टंकारा के दयानन्द की टंकार है हिन्दी ।।
गाँधी की वाणी बन भारत जगा दिया ।आज़ादी के गीतों की ललकार है हिन्दी ।।
'कामायनी' का 'उर्वशी’ का रूप है इसमें ।'आँसू’ की करुण, सहज जलधार है हिन्दी ।।
प्रसाद ने हिमाद्रि से ऊँचा उठा दिया।निराला की वीणा वादिनी झंकार है हिन्दी।।
पीड़ित की पीर घुलकर यह 'गोदान' बन गई ।भारत का है गौरव, शृंगार है हिन्दी ।।
'मधुशाला' की मधुरता है इसमें घुली हुई ।दिनकर के 'द्वापर' की हुंकार है हिन्दी ।।
भारत को समझना है तो जानिए इसको ।दुनिया भर में पा रही विस्तार है हिन्दी ।।
सबके दिलों को जोड़ने का काम कर रही ।देश का स्वाभिमान है, आधार है हिन्दी ।।

चमके वही लोग

खजाना भरने वालों को
भला कहां सम्मान मिल पाया,
चमके वही लोग
बिना मेहनत किये जिनके वह हाथ आया।
——-
शरीर से रक्त
बहता है पसीना बनकर
कांटों को बुनती हुई
हथेलियां लहुलहान हो गयीं
अपनी मेहनत से पेट भरने वाले ही
रोटी खाते बाद में
पहले खजाना भर जाते हैं।
सीना तानकर चलते
आंखों में लिये कुटिल मुस्कराहट लेकर
लिया है जिम्मा जमाने का भला करने का
वही सफेदपोश शैतान उसे लूट जाते हैं।
———-
अब लुटेरे चेहरे पर नकाब नहीं लगाते।
खुले आम की लूट की
मिल गयी इजाजत
कोई सरेराह लूटता है
कोई कागजों से दाव लगाते।
वही जमाने के सरताज भी कहलाते।
चौराहे पर चार लोग आकर
चिल्लाते जूता लहरायेंगे,
चार लोग नाचते हुए
शांति के लिये सफेद झंडा फहरायेंगे।
चार लोग आकर दर्द के
चार लोग खुशी के गीत गायेंगे।
कुछ लोगों को मिलता है
भीड़ को भेड़ों की तरह चराने का ठेका,
वह इंसानो को भ्रम के दरिया में बहायेंगे।
सोच सकते हैं जो अपना,
दर्द में भी नहीं देखते
उधार की दवा का सपना,
सौदागरों और ढिंढोरची के रिश्तों का
सच जो जानते हैं
वही किनारे खड़े रह पायेंगे।

Tuesday, December 7, 2010

पहचान

शक्ल हो बस आदमी का क्या यही पहचान है।ढूँढ़ता हूँ दर-ब-दर मिलता नहीं इन्सान है।।
घाव छोटा या बडा एहसास दर्द का एक है।दर्द एक दूजे का बाँटें तो यही एहसान है।।
अपनी मस्ती राग अपना जी लिए तो क्या जीए।जिंदगी, उनको जगाना हक से भी अनजान है।।
लूटकर खुशियाँ हमारी अब हँसी वे बेचते।दीख रहा, वो व्यावसायिक झूठी सी मुस्कान है।।
हार के भी अब जितमोहन का हार की चाहत उन्हें।ताज काँटों का न छूटे बस यही अरमान है।।

Monday, December 6, 2010

ये डीग्री भी लेलो, ये नौकरी भी लेलो

ये डीग्री भी लेलो, ये नौकरी भी लेलो

ये डीग्री भी लेलो, ये नौकरी भी लेलो,

भले छीन लो मुझसे USA का विसामागर मुझको लौटा दो वो क्वालेज का कन्टीन,वो चाय का पानी, वो तीखा समोसा……….
कडी धूप मे अपने घर से निकलना,वो प्रोजेक्ट की खातीर शहर भर भटकना,वो लेक्चर मे दोस्तों की प्रोक्झी लगाना,वो सर को चीढाना ,वो एरोप्लेन उडाना,वो सबमीशन की रातों को जागना जगाना,वो ओरल्स की कहानी, वो प्रक्टीकल का किस्सा…..बीमारी का कारण दे के टाईम बढाना,
वो दुसरों के Assignments को अपना बनाना,वो सेमीनार के दिन पैरो का छटपटाना,वो WorkShop मे दिन रात पसीना बहाना,
वो Exam के दिन का बेचैन माहौल,पर वो मा का विश्वास – टीचर का भरोसा…..वो पेडो के नीचे गप्पे लडाना,वो रातों मे Assignments Sheets बनाना,
वो Exams के आखरी दिन Theater मे जाना,वो भोले से फ़्रेशर्स को हमेशा सताना,Without any reason, Common Off पे जाना,टेस्ट के वक्त Table me मे किताबों को रखना,
ये डीग्री भी लेलो, ये नौकरी भी लेलो,भले छीन लो मुझसे USA का विसामगर मुझको लौटा दो वो क्वालेज का कन्टीन

Sunday, December 5, 2010

वो मेरे नक्श-ओ-निशा मिटने आया थाऔर मैं ज़मी में ख़ुद को छुपा आया था

वो मेरे नक्श-ओ-निशा मिटने आया थाऔर मैं ज़मी में ख़ुद को छुपा आया था
तेरे सितम का निशान लाया साथ अपनेशब्'ऐ फिराक का एक लम्हा चुरा आया था
किसी नज़र को तो मेरी तलाश नही थीसो मैं ख़ुद से ही नज़र बचा आया था
वो बस अपने फ़राह के लिए आते थे मिलनेउन्हें अपना समझ मैं ज़ख्म दिखा आया था
दिल के टूटते ही अचानक मैं नादां से दाना हुआइस तजुर्बे की क्या कीमत चुका आया था
अफ़सोस नही के मेरा दुश्मन मुझसे जीत गया मलाल यह है की मेरे महबूब ने उसे जिताया था
नम निगाह देख के हमदर्दी ना जाताये तो मैं चश्म का भोझ गिरा आया था
सुपुरत'ऐ खाक कर के ख्वाबों को आपनेमैं वहां की घांस भी जला आया था
तेरे जाने के बाद भी तुझे छोड़ ना पायासम्शन से मैं तेरी राख़ चुरा आया था
वो मांगते थे इश्क की गवाही मुझसेमैं तो कबका जुबां दफ़न कर आया था
जाते जाते भी तेरी याद ना गई दिल सेतो मैं अब ख़ुद को ही भुला आया था
बाद'ओ जाम ही मेरे फाजिल'ऐ उमर हुएतो मैं मैकदे में ही घर बसा आया था
कतरा बन के अटका हूँ तेरी पलकों परदेख ना नज़र झुका के गिर जाऊंगा

A friend is someone who reaches out for your hand...and touches your heart.

Friendship is a pretty full-time occupation if you really are friendly with somebody. You can't have too many friends because then you're just not really friends.