मेरी कलम से

Wednesday, February 9, 2011

जब से तू है गई

पतझड़ हो गया मेरा संसार
जब से तूने छोड़ दिया है साथ
ना जाने क्या भूल हुई
जब से तू है गई
मेरी जिंदगी मुझसे दूर हुई
तेरे बगैर सब कुछ अधूरा है
ये घर, ये आँगन
ये नदी का किनारा, वो बगीचा

अब इस आम पर कोयल नहीं आती
उसका वो मधुर कलरव
चीख बन गया है अब
जब से तू है गई ...

बगिया में नहीं खिला कोई गुलाब
माटी की वो सौंधी खूशबू कहाँ खो गई
तेरे जाने से खुशियाँ मुझसे जुदा हो गई
अब नहीं बजती मंदिर में घंटियाँ
सुनाई देती है हर जगह दर्द की चीख
हर कोई दुखी है मेरे दर्द में

और ना सता, अब आजा तू बन के बहार
उड़ेल दे आँचल से मेरे जीवन में प्यार
कर फिर से वो सोलह श्रृंगार
कि आ जाए फिजाओं में बहार
बुला ले उस कोयल को
जो मधुर गीत है गाती
रख दे मेरी आँखों पे हथेली
आजा सामने तू हँसती मुस्कुराती।

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विकास कुमार गर्ग