मेरी कलम से

Saturday, January 29, 2011

आज दुनियाँ में क्या नहीं होता

प्यार तुझसे हुआ नहीं होता
तो मैं इंसान सा नहीं होता

तेरी यादों की गोंद ना होती
टूटकर मैं जुड़ा नहीं होता

मंदिरों में अगर ख़ुदा मिलता
एक भी मयक़दा नहीं होता

काट दी जाती हैं झुकी डालें
पेड़ यूँ ही बड़ा नहीं होता

ताज को छू के मौलवी तू कह
पत्थरों में ख़ुदा नहीं होता

झूठ ने फेंका है अणु बम जब से
पाँव पर सच खड़ा नहीं होता

शाम की लालिमा में ना फँसता
तो दिवाकर डुबा नहीं होता

लूट लेते हैं फूल को काँटे
आज दुनियाँ में क्या नहीं होता

1 comment:

  1. मेरी रचना को अपने ब्लॉग पर स्थान देने के लिए धन्यवाद

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विकास कुमार गर्ग