मेरी कलम से

Friday, February 18, 2011

जानता हूँ अकेला हूँ फिलहाल............


किसी की आँखों मे मोहब्बत का सितारा होगा
एक दिन आएगा कि कोई शक्स हमारा होगा

कोई जहाँ मेरे लिए मोती भरी सीपियाँ चुनता होगा
वो किसी और दुनिया का किनारा होगा

काम मुश्किल है मगर जीत ही लूगाँ किसी दिल को
मेरे खुदा का अगर ज़रा भी सहारा होगा

किसी के होने पर मेरी साँसे चलेगीं
कोई तो होगा जिसके बिना ना मेरा गुज़ारा होगा

देखो ये अचानक ऊजाला हो चला,
दिल कहता है कि शायद किसी ने धीमे से मेरा नाम पुकारा होगा

और यहाँ देखो पानी मे चलता एक अन्जान साया,
शायद किसी ने दूसरे किनारे पर अपना पैर उतारा होगा

कौन रो रहा है रात के सन्नाटे मे
शायद मेरे जैसा तन्हाई का कोई मारा होगा

अब तो बस उसी किसी एक का इन्तज़ार है,
किसी और का ख्याल ना दिल को ग़वारा होगा

ऐ ज़िन्दगी! अब के ना शामिल करना मेरा नाम
ग़र ये खेल ही दोबारा होगा

जानता हूँ अकेला हूँ फिलहाल
पर उम्मीद है कि दूसरी और ज़िन्दगी का कोई ओर ही किनारा होगा

मैं अकेला हूँ यहाँ पर

मैं अकेला हूँ यहाँ पर
साथ तेरी याद है ….
हो गए तुम दूर जब से,
दिल तेरे ही पास है ….!
प्यार तुझसे ही किया है,
आज भी करते हैं हम,
गीत जो गाये कभी थे
आज भी दुहरायें  हम  ….
कब मिलोगी फिर तुम हमसे
सोचते  हैं  रात दिन ……
मैं अकेला हूँ यहाँ …….
ये समा कितना सुहाना,
पर हमें भाता नहीं,
मन की ऐसी ये उदासी,
कुछ किये जाती नहीं ….
कैसे बहलाऊँ मैं मन को,
साथ जो तुम ही नहीं ….!
मैं अकेला हूँ यहाँ …..
राहें जीवन की कुछ ऐसीं,
गज़ब ढाएँ प्यार पर
उभर आतीं
उलझने
क्यूँ प्रेमियों की राह पर ….
ना तुझे समझा सका मैं,
हक़ तेरा ही है मुझ पर ….!
मैं अकेला हूँ यहाँ ….

Friday, February 11, 2011

एक ज़िंदगी को एक ज़िंदगी की तलाश हे,


एक ज़िंदगी को एक ज़िंदगी की तलाश हे,
दरिया मे फॅसी किसती को साहिल की तलाश हे,
इंतेज़ार मे किसी के धुधली हुई नज़र,
उस धुंधली नज़र को किसी अपने की तलाश हे.
दरवाजे की ओट मे छिपी एक दुल्हन सी,
उन रुकी हुई साँसों को किसी आहत की तलाश हे.
खुद को मिटाकर सँवारी ज़िंदगी जिनकी,
आज उन्हीं के पत्थर को मेरी तलाश हे.
अपनों पर था यकीन,था गेरों पर यकीन,
आज उस यकीन को किसी धोखे की तलाश हे.
ना ज़िकर हो बेवफ़ाई का तो अब केसी मुहोब्बत,
बेवफाओं की भीड़ मे अब वफ़ा की तलाश हे.
हुमसफ़र बनने वाले हुमसफ़र नहीं होते,
साथ चले जो उमर भर उस दुश्मन की तलाश हे.
खुदा खेर करे उन ज़ुलम करने वालों पर,
बेबसी के जख्म को अब मरहम की तलाश हे

आँखों की ख़ुशबू को छुआ नहीं महसूस किया जाता है

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आँखों की ख़ुशबू को छुआ नहीं महसूस किया जाता है
दिल को बहलावा नहीं दर्द दिया जाता है
दर्द जो है इश्क़ में वह ही ख़ुदा है सबका
दर्द के पहलू में यार को सजदा किया जाता है

आँखों की ख़ुशबू को छुआ नहीं महसूस किया जाता है…
तुम याद आ रहे हो और तन्हाई के सन्नाटे हैं
किन-किन दर्दों के बीच ये लम्हे काटे हैं
अब साँसें बिखरी हुई उधड़ी हुई रहती हैं
हमने साँसों के धागे रफ़्ता-रफ़्ता यादों में बाटे हैं

आँखों की ख़ुशबू को छुआ नहीं महसूस किया जाता है…
इस जनम में हम मिले हैं क्योंकि हमें मिलना है
तुम्हारे प्यार का फूल मेरे दिल में खिलना है
दूरियाँ तेरे-मेरे बीच कुछ ज़रूर हैं सनम
मगर यह फ़ासला भी एक रोज़ ज़रूर मिटना है

आँखों की ख़ुशबू को छुआ नहीं महसूस किया जाता है…

Wednesday, February 9, 2011

अब नहीं लोट के आने वाला



अब नहीं लोट के आने वाला
घर खुला छोड़ के जाने वाला

होगईं कुछ इधर ऐसी बातें
रुक गया रोज़ का आने वाला

जिस्म आँखों से चुरा लेता है
एक तस्वीर बनाने वाला

लाख चेहरा हो शगुफ़्ता लेकिन
ख़ुश नहीं ख़ुश नज़र आने वाला

ज़द में तूफ़ान की आया कैसे
प्यास साहिल पे बुझाने वाला

रेह गया है मेरा साया बनकर
मुझ को ख़ातिर में न लाने वाला

बन गया हमसफ़र आख़िर नज़्मी
रास्ता काट के जाने वाला

आप से बात करेंगे कभी तन्हाई में



बेख़्याली का बड़ा हाथ है रुसवाई में
आप से बात करेंगे कभी तन्हाई में

हम हैं तस्वीरों के माहौल में जीने वाले
हम उतर जाते हैं हर रंग की गेहराई में

बन गए लोग तअल्लुक़ के भरोसे क्या क्या
हम तो मारे गए इस रस्म-ए-शनासाई में

मैंनें वो बात भी पढ़ली जो इबारत में न थी
लोग मसरूफ़ रहे हाशिया आराई में

पेड़ के फल तो पड़ोसी नहीं छूने देते
छांव कुछ देर को आजाती है अंगनाई में

नक़्श दीवार पे उभरेंगे तो डर जाओगे

ख़्वाब नज़्मी न तराशा करो तन्हाई में

तन्हाई


तन्हाई में मेरी मुस्कुराती है तू
ख्वाब में मेरे आती है तू
ओस की बूंद की तरह
जिस्म पे गिर दिल से गुजर जाती है तू
जब तन्हाई में मेरी मुस्कुराती है तू...

हर शाम तुझको सजाता हूं मैं
आंखों में नमी की तरह
होठों पे शबनम की तरह
जब याद आती है तू
तन्हाई में मेरी मुस्कुराती है तू

जब से तू है गई

पतझड़ हो गया मेरा संसार
जब से तूने छोड़ दिया है साथ
ना जाने क्या भूल हुई
जब से तू है गई
मेरी जिंदगी मुझसे दूर हुई
तेरे बगैर सब कुछ अधूरा है
ये घर, ये आँगन
ये नदी का किनारा, वो बगीचा

अब इस आम पर कोयल नहीं आती
उसका वो मधुर कलरव
चीख बन गया है अब
जब से तू है गई ...

बगिया में नहीं खिला कोई गुलाब
माटी की वो सौंधी खूशबू कहाँ खो गई
तेरे जाने से खुशियाँ मुझसे जुदा हो गई
अब नहीं बजती मंदिर में घंटियाँ
सुनाई देती है हर जगह दर्द की चीख
हर कोई दुखी है मेरे दर्द में

और ना सता, अब आजा तू बन के बहार
उड़ेल दे आँचल से मेरे जीवन में प्यार
कर फिर से वो सोलह श्रृंगार
कि आ जाए फिजाओं में बहार
बुला ले उस कोयल को
जो मधुर गीत है गाती
रख दे मेरी आँखों पे हथेली
आजा सामने तू हँसती मुस्कुराती।