मेरी कलम से

Sunday, January 23, 2011

मानवता का धर्म नया है

धूप वही है, रुप वही है,
सूरज का स्वरूप वही है;
केवल उसका प्रकाश नया है,
किरणों का एहसास नया है.

दिन वही है, रात वही है,
इस दुनिया की, बात वही है;
केवल अपना आभाष नया है ,
जीवन में कोई खास नया है.

रीत वही है, मीत वही है,
जीवन का संगीत वही है;
केवल उसमें राग नया है,
मित्रों का अनुराग नया है.

नाव वही है, पतवार वही है,
बहते जल की रफ़्तार वही है;
केवल नदी का किनारा नया है,
इस जीवन का सहारा नया है.


खेत वही है, खलिहान वही है,
मेहनतकश किसान वही है;
केवल खेतों का धान नया है,
धरती का परिधान नया है.

मन वही है, तन वही है,
मेरा प्यारा वतन वही है;
केवल अपना कर्म नया है,
मानवता का धर्म नया है.

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विकास कुमार गर्ग