मेरी कलम से

Saturday, January 29, 2011

टुकड़ा-टुकड़ा वक़्त चबाती तनहाई

रातों को यह नींद उड़ाती तनहाई
 टुकड़ा टुकड़ा वक़्त चबाती तनहाई
  
यादों की फेहरिस्त बनाती तनहाई
बीते दुःख को फिर सहलाती तनहाई  
  
रात के पहले पहर में आती तनहाई
सुबह का अंतिम पहर मिलाती तनहाई  
  
सन्नाटा रह रह कुत्ते सा भौंक रहा  
शब पर अपने दांत गड़ाती तनहाई  
  
यादों के बादल टप टप टप बरस रहे
अश्कों को आँचल से सुखाती तनहाई  
  
खुद से हँसना  खुद से  रोना बतियाना 
सुन सुन अपने सर को हिलाती तनहाई  
  
जीवन भर का लेखा जोखा पल भर में
रिश्तों की  तारीख  बताती  तनहाई

 सोचों के इस लम्बे सफ़र में रह रह  कर 
करवट करवट  मन बहलाती तनहाई

2 comments:

  1. Copy paste main lage raho.........
    Bhai logo.............

    ReplyDelete

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
विकास कुमार गर्ग