मेरी कलम से

Sunday, January 23, 2011

मेरा प्यार

मेरा प्यार
कोई तुम्हारी सहेली तो नहीं
कि जब चाहो
तब कर लो तुम उससे कुट्टी
या कोई ईश निंदा का दोषी तो नहीं
कि बिना बहस किए
जारी कर दिया जाए
उसके नाम मौत का फतवा
या फिर
कोई मिट्टी का खिलौना तो नहीं
कि हल्की-सी बारिश आए
और गलकर खो दे वह अपनी अस्मिता
या कोई सूखी पत्तियां तो नहीं
कि छोटी-सी चिंगारी भड़के
और हो जाए वह जलकर खाक
मेरा प्यार
सच पूछो तो
तुम्हारी मोहताज नहीं
तुम्हारे बगैर भी है वह
क्योंकि मैंने कभी तुम्हें केवल देह नहीं समझा
मेरे लिए
देह से परे
कल भी थी तुम
और आज भी हो
मेरा प्यार
इसलिए जिएगा सर्वदा
तुम्हारे लिए
तुम्हारे बगैर भी
उसी तरह
जिस तरह
जी रही है
कल-कल करती नदी।

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विकास कुमार गर्ग