मेरी कलम से

Sunday, January 23, 2011

जिनके पास पैसे कम हैं

महँगी हुई दीवाली
अब पापा क्या करें
पापा की जेब है खाली
अब पापा क्या करें
महँगी हुई दीवाली
अब पापा क्या करें
पापा की जेब है खाली
अब पापा क्या करें

चुन्नू को चाहिए महँगी फुलझरियां
मुन्नू को महँगे बम,पटाके
इन पर पैसे खर्च दिए तो
घर में पड़ जाएँगे फाके
अब पापा क्या करें
महँगी हुई दीवाली
अब पापा क्या करें
पापा की जेब है खाली
अब पापा क्या करें

पत्नी को चाहिए महँगी साड़ी
बिन साड़ी नहीं चलेगी गृहस्‍थी की गाड़ी
बिन साड़ी पत्नी ना माने
कहती है मत बनाओ महंगाई के बहाने
साड़ी नहीं मिली तो चली जायेगी मायके
अब पापा क्या कर
महँगी हुई दीवाली
अब पापा क्या करें
पापा की जेब है खाली
अब पापा क्या करें

आलू, पुड़ी, खीर, कचौडी
महगाई ने कमर है तोड़ी
मेवा फल मीठे पकवान
महंगाई ने भुला दिए हैं इन के नाम
कैसे लाऊँ मैं यह सब घर पर अपने
महंगाई खड़ी है घर दिवार पे मेरे जैसे लठ लिए कोई दरवान
अब पापा क्या करें
महँगी हुई दिवाली
अब पापा क्या करें
पापा की जेब है खाली
अब पापा क्या कारें

की है सिर्फ घर की सफाई
महंगाई ने छीन ली है पुताई
सजा ना पाऊं घर को में अपने
धरे रह गए मन के सब सपने
बस काम चला रहा हूँ
घर के दवार पे में अपने
बस बांध शुभ दीवाली का बन्दनवार
अब पापा क्या करे
महँगी हुई दीवाली
अब पापा क्या करें
पापा की जेब है खाली
अब पापा क्या करें

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विकास कुमार गर्ग