मेरी कलम से

Saturday, March 26, 2011

भारतीय संस्कृति पर बढ़ा खतरा

भारत वर्ष पर अंग्रेजों का हुकुमत तक़रीबन दो सौ सालों तक रहा है १५ अगस्त १९४७ को वह भारत छोड़ कर अपने मुल्क को वापस चले गए , लेकिन जाने से पहले उन्होंने इस धरती पर कुछ बीज़ रोप कर गए थे। अब वो बीज़ अंकुरित होकर विशाल पेड़ का रूप धारण कर लिया है, उस पेड़ कि शाखाएं इतनी बढ़ी इतनी बढ़ी कि आज पुरे मुल्क में फ़ैल चुकी है। आज कुकुरमुत्ते कि तरह पुरे भारत में इंग्लिश मीडियम कि स्कूलें खुली हुई है या खुल रही है। अब माध्यमिक विद्यालयों में बच्चा वर्ग पहला वर्ग या दूसरा वर्ग नहीं होता है बल्कि प्रेप, नर्सरी, के जी और के जी- 1 से क्लास शुरू होता है। अब छोटे बच्चे “क ख ग घ ” नहीं पढ़ते है वो “A B C D” से अपनी पढाई शुरू करते है। माँ बाप भी अपने बच्चों को इंग्लिस मीडियम स्कूलों में दाखिला दिलाकर गौर्वान्तित महशुस करते है। इंग्लिस मीडियम कि स्कूलें पहले महानगरों में हुआ करती थी धीरे-धीरे बड़े शहरों से होते हुए छोटे शहरों तक बढ़ी अब हालत यह है कि यह गावं और छोटे कस्बे तक फ़ैल गई है। इसके फैलाव का ही कारण है कि आज हिंदी माध्यम कि स्कूलें नहीं खुल रही है और जो पहले से थी वो बंद हो गई है या बंद होने के कगार पर है। अब हिंदी माध्यम के स्कूलों में बच्चे पढने के लिए नहीं जाते है क्यों कि माता-पिता अपने बच्चे को हिंदी पढ़ाने में तौहीनी समझते है।
” यह कितनी बड़ी बिडम्बना है हिंदुस्तान कि अपनी भाषा हिंदी है और हम हिन्दुस्तानी ही अपनी हिंदी भाषा के दुश्मन बन बैठे है। ” इसे जाहिल और गवारों कि भाषा मान बैठे है। हम अपने बच्चों को किस रास्ते पर डाल रहे है। अगर हमारी रफ़्तार यही रही तो आने वाली पीढियां हिंदी जानेगी ही नहीं। आज से पच्चीस तीस साल पहले ज्यादातर हिंदी माध्यम कि स्कूलें हुआ करती थी जिसमे छठा वर्ग से अंग्रेजी कि पढाई शुरू होती थी। पूरी पढाई हिंदी में होती थी केवल एक पेपर अंग्रेजी का होता था आठवी वर्ग से अंग्रेजी दो पेपर हो जाता था। लेकिन अब स्कूलों में पूरी पढाई अंग्रेजी में होती है सिर्फ एक पेपर हिंदी का होता है वह भी एक्झिक विषय का। मतलब यह कि अगर बच्चा चाहे तो हिंदी रख सकता और नहीं तो उसके जगह पर कोई और विषय रख सकता है। पहले संस्कृत एक्झिक विषय होता था।
उस अंग्रेजी के एक पेपर ने आज ऐसा पांव पसारा कि अंग्रेजी मुख्य हो गया और हिंदी एक्झिक।
हमलोग जब विद्यालय में पढ़ते थे तो उन दिनों कोई सहपाठी अंग्रेजी में कोई आवेदन लिखता था तो हम विद्यार्थी उस लड़के को बहुत महत्त्व देते थे, शायद उस वक्त यह समझ में नहीं आता था कि यही अंग्रेजी भाषा सर्वोपरि हो जाएगी, क्यों कि हमलोगों कि मातृभाषा हिंदी थी, बोल-चाल कि भाषा हिंदी थी पढाई पूरी तरह हिंदी में करते थे हाँ एक विषय अंग्रेजी का होता था। अब समझ में आने लगा कि इस भाषा में आकर्षण है, रोब है तभी तो हम अभिभावक अपने बच्चे को अंग्रेजी पढ़ाने पर तुले हुए है। जो मेरे अन्दर जो कमियां रह गई थी वह बच्चों के मध्यम से पूरी होते देख रहे है। आज हम अपनी भावी पीढ़ियों को अंग्रेज बनते देख रहे है। आज उनकी शिच्छा, रहन-सहन, खान-पान, बोल-चाल अंग्रेजो कि तरह होते देख रहे है। आज हम इतने खुले विचार धारा के हो गए है अब लड़का या लड़की में फर्क नहीं करते है। अब लड़कियां भी लड़के के कपडे पहन कर कदम से कदम मिला कर चलने लगी है। अब लड़के का ही चार पांच गर्ल फ्रेंड नहीं होती है बल्कि लड़कियों का भी चार पांच बॉय फ्रेंड होते है। अब लड़कों के साथ-साथ लड़कियां भी नशा पान करने लगी है, स्वछन्द जिन्दगी जीने लगी है। अब हमारी वर्तमान पीढियां पूरी तरह अंग्रेज हो गई है। जो मैंने अपने बच्चों में बुनियाद डाली थी आज वह पूरी तरह साकार हो गया है।
अब इसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे है। आज के बच्चे अपने बूढ़े हो चले माता-पिता को साथ रखना नहीं चाहते है क्यों कि उनके पास समय नहीं है। आज यही कारण है कि महानगरों एवं बड़े शहरों में “ओल्ड एज होम” नाम से बहुत सी संस्थाएं चलती है, अभी यह संस्थाएं महानगरों एवं बड़े शहरों तक ही सीमित है लेकिन अगले बीस सालों में यह छोटे शहर एवं गाँव तक खुल जाएगी। यह दूसरी सभ्यता के नक़ल का ही परिणाम है कि आज हमारी भावी पीढियां एक ऐसे कगार पर खडी है जो न पूरी तरह अंग्रेज ही है न ही पूरी तरह भारतीय। हम अभिभावक ही दोषी है इस दुष्परिणाम के। हमारी भावी पीढियां नहीं है। बच्चा तो बच्चा होता है उसे जो चाहते है हम बनाते है। हम अभिभावक अन्दर से इतने कुंठित तथा हीनभावना से ग्रसित है कि अपने ही बच्चे को एक ऐसे मुकाम पर खड़ा कर दिए है जहाँ अपनी पहचान ही खो दिया है।
मै अंग्रेजी के विरोध में नहीं हूँ अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है इस भाषा कि जानकारी जरुरी है इसके वगैर विदेशो में काम नहीं चल सकता है उच्च शिच्छा में भी इस भाषा ज्ञान होना जरुरी है। मै अंग्रेजी सभ्यता का विरोध करता हूँ। अंग्रेजी सभ्यता अगर भारत में पनपने लगी तो हमारी सभ्यता खतरे में पड़ जाएगी।

Friday, March 18, 2011

होली के दिन सबका चरित्र बदल जाता है

घर से नेकर और कैप पहनकर
निकले घर से बाहर निकले लेने किराने का सामान
तो सामने से आता दिखा फंदेबाज
और बिना देख आगे बढ़ गया किया नही मान
तब चिल्ला कर आवाज दी उसे
”क्यों आँखें बंद कर जा रहे हो
अभी तो दोपहर है
बिना हमें देखे चले जा रहे हो
क्या अभी से ही लगा ली है
या लुट गया है सामान’

देखकर चौंका फंदेबाज
”आ तो तुम्हारे घर ही रहा हूँ
यह देखने कल कहीं भाग तो नहीं जाओगे
वैसे पता है तुम अपने ब्लोग पर
कल भी कहर बरपाओगे
पर यह क्या होली का हुलिया है
कहाँ है धोती और टोपी
पहन ली नेकर और यह अंग्रेजी टोपी
वैसे बात करते हो संस्कृति और संस्कार की
पर भूल गए एक ही दिन में सम्मान”
हंसकर बोले
”होली के दिन सभी लोगों का
चरित्र बदल जाता है
समझदार आदमी भी बदतमीजी पर उतर आता है
बचपन में देखा है किस तरह
कांटे से लोगों की टोपी उडाई जाती थी
और धोती फंसाई जाती थी
तब से ही तय किया एक दिन
अंग्रेज बन जायेंगे
किसी तरह अपना बचाएंगे सम्मान
वैसे भी पहनने और ओढ़ने से
संस्कार और संस्कृति का कोई संबंध नहीं
मजाक और बदतमीजी में अंतर होता है
हम धोती पहने या नेकर
देशी पहने या विदेशी टोपी
लिखेंगे तो हास्य कविता
बढाएंगे हिन्दी का सम्मान

फ़िज़ूल

अपनी दीवानगी को गंवाना फ़िज़ूल ,
जुगनुओं रोशनी में नहाना फिजूल ।

किस्त में खुदकुशी इश्क का है चलन ,
इश्क दरिया है पर डूब जाना फ़िज़ूल ।

चांदनी रात में चांद के सामने यूँ -
आपका इसकदर रूठ जाना फ़िज़ूल ।

शर्त है प्यार में प्यार की बात हो ,
प्यार को बेवजह आजमाना फ़िज़ूल ।

लफ्ज़ को बिन तटोले हुये ये'प्रभात'
बज़्म में कोई भी गीत गाना फ़िज़ूल ।