फिर एक सिगरेट जला रहा हूँ
फिर एक तिल्ली बुझा रहा हूँ ,
तेरी नज़र में ये एक गुनाह है
मैं तो तेरे वादे भुला रहा हूँ ,
समझ मत इसको मेरी आदत
मैं तो बस धुँआ उड़ा रहा हूँ ,
ये तेरी यादो के सिलसिले है
मैं तो तेरी यादे जला रहा हूँ ,
मैं पी कर इतना बहक चुका हूँ
की गम के किस्से सुना रहा हूँ ,
अगर तुमे गम है तो पास आ जाओ
मैं पी रहा हूँ और पिला रहा हूँ ,
हैं मेरी आँखे तो आज नम
मगर मैं सबको हंसा रहा हूँ ,
खोकर अपनी जिन्दगी लो
मैं आज फिर उसके नाम एक पेग बना रहा हूँ!
नोट - (दोस्तों मुझे गलत मत समझना मैं सिगरेट या शराब नहीं पीता
ये तो बस यू ही लिख दिया!)
ये तेरी यादो के सिलसिले है
ReplyDeleteमैं तो तेरी यादे जला रहा हूँ ,
मैं पी कर इतना बहक चुका हूँ
की गम के किस्से सुना रहा हूँ ,
देखिये ना याद में डूब कर कैसे हालात का सामना करना पड़ता है...अति सुंदर
आशु
अच्छी अभिव्यक्ति ......
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना है,
ReplyDeleteसाभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
आप लोगो का प्यार मिलता रहा तो ऐसे ही लिखता रहूँगा !
ReplyDeleteविकास