मेरी कलम से

Friday, June 10, 2011

उसकी याद

फिर एक सिगरेट जला रहा हूँ
फिर एक तिल्ली बुझा रहा हूँ ,
तेरी नज़र में ये एक गुनाह है
मैं तो तेरे वादे भुला रहा हूँ ,
समझ मत इसको मेरी आदत
मैं तो बस धुँआ उड़ा रहा हूँ ,
ये तेरी यादो के सिलसिले है
मैं तो तेरी यादे जला रहा हूँ ,
मैं पी कर इतना बहक चुका हूँ
की गम के किस्से सुना रहा हूँ ,
अगर तुमे गम है तो पास आ जाओ
मैं पी रहा हूँ और पिला रहा हूँ ,
हैं मेरी आँखे तो आज नम
मगर मैं सबको हंसा रहा हूँ ,
खोकर अपनी जिन्दगी लो
मैं आज  फिर उसके नाम एक पेग बना रहा हूँ!

नोट - (दोस्तों मुझे गलत मत समझना मैं सिगरेट या शराब नहीं पीता
ये तो बस यू ही लिख दिया!)

4 comments:

  1. ये तेरी यादो के सिलसिले है
    मैं तो तेरी यादे जला रहा हूँ ,
    मैं पी कर इतना बहक चुका हूँ
    की गम के किस्से सुना रहा हूँ ,

    देखिये ना याद में डूब कर कैसे हालात का सामना करना पड़ता है...अति सुंदर

    आशु

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  2. बहुत बढ़िया रचना है,
    साभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  3. आप लोगो का प्यार मिलता रहा तो ऐसे ही लिखता रहूँगा !


    विकास

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
विकास कुमार गर्ग