एक ज़िंदगी को एक ज़िंदगी की तलाश हे,
दरिया मे फॅसी किसती को साहिल की तलाश हे,
इंतेज़ार मे किसी के धुधली हुई नज़र,
उस धुंधली नज़र को किसी अपने की तलाश हे.
दरवाजे की ओट मे छिपी एक दुल्हन सी,
उन रुकी हुई साँसों को किसी आहत की तलाश हे.
खुद को मिटाकर सँवारी ज़िंदगी जिनकी,
आज उन्हीं के पत्थर को मेरी तलाश हे.
अपनों पर था यकीन,था गेरों पर यकीन,
आज उस यकीन को किसी धोखे की तलाश हे.
ना ज़िकर हो बेवफ़ाई का तो अब केसी मुहोब्बत,
बेवफाओं की भीड़ मे अब वफ़ा की तलाश हे.
हुमसफ़र बनने वाले हुमसफ़र नहीं होते,
साथ चले जो उमर भर उस दुश्मन की तलाश हे.
खुदा खेर करे उन ज़ुलम करने वालों पर,
बेबसी के जख्म को अब मरहम की तलाश हे
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विकास कुमार गर्ग