बेख़्याली का बड़ा हाथ है रुसवाई में
आप से बात करेंगे कभी तन्हाई में
हम हैं तस्वीरों के माहौल में जीने वाले
हम उतर जाते हैं हर रंग की गेहराई में
बन गए लोग तअल्लुक़ के भरोसे क्या क्या
हम तो मारे गए इस रस्म-ए-शनासाई में
मैंनें वो बात भी पढ़ली जो इबारत में न थी
लोग मसरूफ़ रहे हाशिया आराई में
पेड़ के फल तो पड़ोसी नहीं छूने देते
छांव कुछ देर को आजाती है अंगनाई में
नक़्श दीवार पे उभरेंगे तो डर जाओगे
ख़्वाब नज़्मी न तराशा करो तन्हाई में
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विकास कुमार गर्ग