आँखों की ख़ुशबू को छुआ नहीं महसूस किया जाता है
दिल को बहलावा नहीं दर्द दिया जाता है
दर्द जो है इश्क़ में वह ही ख़ुदा है सबका
दर्द के पहलू में यार को सजदा किया जाता है
आँखों की ख़ुशबू को छुआ नहीं महसूस किया जाता है…
तुम याद आ रहे हो और तन्हाई के सन्नाटे हैं
किन-किन दर्दों के बीच ये लम्हे काटे हैं
अब साँसें बिखरी हुई उधड़ी हुई रहती हैं
हमने साँसों के धागे रफ़्ता-रफ़्ता यादों में बाटे हैं
आँखों की ख़ुशबू को छुआ नहीं महसूस किया जाता है…
इस जनम में हम मिले हैं क्योंकि हमें मिलना है
तुम्हारे प्यार का फूल मेरे दिल में खिलना है
दूरियाँ तेरे-मेरे बीच कुछ ज़रूर हैं सनम
मगर यह फ़ासला भी एक रोज़ ज़रूर मिटना है
आँखों की ख़ुशबू को छुआ नहीं महसूस किया जाता है…
विकास जी ये किसकी कविता है
ReplyDeleteIt's requested to credit author
ReplyDeleteoriginal work: http://vinayprajapati.wordpress.com/2009/04/15/aamkhon-kii-khushboo-ko-chhuaa-nahiin-mahsoos-kiyaa-jaata-hai/