मेरी कलम से

Wednesday, February 9, 2011

अब नहीं लोट के आने वाला



अब नहीं लोट के आने वाला
घर खुला छोड़ के जाने वाला

होगईं कुछ इधर ऐसी बातें
रुक गया रोज़ का आने वाला

जिस्म आँखों से चुरा लेता है
एक तस्वीर बनाने वाला

लाख चेहरा हो शगुफ़्ता लेकिन
ख़ुश नहीं ख़ुश नज़र आने वाला

ज़द में तूफ़ान की आया कैसे
प्यास साहिल पे बुझाने वाला

रेह गया है मेरा साया बनकर
मुझ को ख़ातिर में न लाने वाला

बन गया हमसफ़र आख़िर नज़्मी
रास्ता काट के जाने वाला

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विकास कुमार गर्ग