मेरी कलम से

Saturday, May 21, 2011

समझ में नहीं आता

कभी जमीं तो कभी आसमा समझ में नहीं आता
इस दिल का टिखाना भी समझ में नहीं आता
मेरी आँखे आपके यादो का चिराग तो नहीं
क्यों आये सिर्फ आप ही नज़र समझ में नहीं आता
चाहे अनचाहे मैं आपको याद किया करता हूँ
ये आदत है या जरुरत समझ में नहीं आता
पागल सा बनकर रह गया हु कुछ सोच सोच कर
पहले हंसू या रोऊ कुछ समझ में नहीं आता
 
विकास

1 comment:

  1. बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में

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विकास कुमार गर्ग