मेरी कलम से

Friday, May 6, 2011

मैं और मेरी तन्हाई



रहते हैं साथ साथ मैं और मेरी तन्हाईकरते हैं राज़ की बात मैं और मेरी तन्हाईदिन तो गुज़र ही जाता है लोगों की भीड़ मेंकरते हैं बसर रात मैं और मेरी तन्हाई साँसों का क्या भरोसा कब छोड़ जाए साथलकिन रहेंगे साथ मैं और मेरी तन्हाईआये न तुम्हे याद कभी भूल कर भी हमकरते हैं तुम्हे याद मैं और मेरी तन्हाईआ के पास क्यों दूर हो गए हम सेकरते हैं तेरी तलाश मैं और मेरी तन्हाईतुम को रखेंगे सात अमानत बना के घर कीरह जाएँ फिर ना तनहा मैं और मेरी तन्हाईआ जा लौट कर अब मेरे दिल के पास फिर से दूर करदे मेरी तन्हाई.............
रहते हैं साथ साथ मैं और मेरी तन्हाईकरते हैं राज़ की बात मैं और मेरी तन्हाई!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

3 comments:

  1. विकास जी बहुत खूब लिखा आपने ..................वाकई इन हालातों से गुजर कर देखा है ............तन्हाई का अलग ही अंदाज होता है

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  2. अकेलापन कभी कभी अच्छा भी होता है.... खुद बातें हो जाती हैं...... अच्छा लिखा विकास..

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
विकास कुमार गर्ग