मेरी कलम से

Saturday, July 16, 2011

एक लड़की मुझे सताती है

अंधेरी-सी रात में एक खिड़की डगमगाती है
सच बताऊँ यारों तो, एक लड़की मुझे सताती है।
भोली भाली सूरत उसकी मखमली-सी पलकें है
हल्की इस रोशनी में, मुझे देख शर्माती है
सच बताऊँ यारों तो इक लड़की मुझे सताती है
बिखरी-बिखरी ज़ुल्फ़ें उसकी शायद घटा बुलाती है,
उसके आँखों के काजल से बारिश भी हो जाती है
दूर खड़ी वो खिड़की पर मुझे देख मुसकुराती है।
सच बताऊँ यारों तो इक लड़की मुझे सताती है
उसकी पायल की छम-छम से एक मदहोशी-सी छा जाती है
ज्यों की आंख बंद करूँ मैं तो, सामने वो जाती है
सच बताऊँ यारों तो इक लड़की मुझे सताती है
ज्यों ही आँख खोलता हूँ मैं तो ख़्वाब वो बन जाती है
अंधेरी-सी रात में एक खिड़की डगमगाती है
रोज़ रात को इसी तरह इक लड़की मुझे सताती है

8 comments:

  1. bahut sundar shabdon me abhivyakt kiya hai aapne hriday ke udgaron ko .badhai sweekaren Vikas ji.

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  2. विकास जी आपके ब्लॉग को आज हमने ये ब्लॉग अच्छा लगा पर लिया है.आप भी वहां आयें और हमारी प्रस्तुति की त्रुटियों से हमें वाकिफ कराएँ.

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  3. शालिनी जी के प्रयास से हम आप तक पहुंचे ..बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति दी है आपने ...शुभकामनाओं के साथ आभार ।

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  4. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ..........आभार

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  5. बहुत सुन्दर रचना शेयर करने के लिये बहुत बहुत आभार

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  6. बहुत बहुत धन्यवाद आपका शालिनी जी

    आपको हमारी रचना पसंद आई

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  7. बहुत बहुत धन्यवाद आप सभी का
    आपको हमारी रचना पसंद आई

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
विकास कुमार गर्ग