ज़िन्दगी बड़ी नागवार गुज़री है !क़रार पा के ये, बेकरार गुज़री है !!
गमों की शाम भी आई थी तसल्ली देने !करीब आके मेरे अश्क़बार गुज़री है !!
शम्मा की लौ में जलने की तमन्ना लेकर !तड़प – तड़प के सहर बार बार गुज़री है !!
शज़र उदास है,मौसम भी है धुआं – धुआं !नज़र चुरा के अबके बहार गुज़री है !!
मेरे क़ातिल मेरे मुंसिफ के इशारों पर !रिहाई मुझसे अब दरकिनार गुज़री है !!
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
विकास कुमार गर्ग