मेरी कलम से

Thursday, December 9, 2010

हिन्दी

खुसरो के हृदय का उद्‌गार है हिन्दी ।कबीर के दोहों का संसार है हिन्दी ।।
मीरा के मन की पीर बन गूँजती घर-घर ।सूर के सागर - सा विस्तार है हिन्दी ।।
जन-जन के मानस में, बस गई जो गहरे तक ।तुलसी के 'मानस' का विस्तार है हिन्दी ।।
दादू और रैदास ने गाया है झूमकर ।छू गई है मन के सभी तार है हिन्दी ।।
'सत्यार्थप्रकाश' बन अँधेरा मिटा दिया ।टंकारा के दयानन्द की टंकार है हिन्दी ।।
गाँधी की वाणी बन भारत जगा दिया ।आज़ादी के गीतों की ललकार है हिन्दी ।।
'कामायनी' का 'उर्वशी’ का रूप है इसमें ।'आँसू’ की करुण, सहज जलधार है हिन्दी ।।
प्रसाद ने हिमाद्रि से ऊँचा उठा दिया।निराला की वीणा वादिनी झंकार है हिन्दी।।
पीड़ित की पीर घुलकर यह 'गोदान' बन गई ।भारत का है गौरव, शृंगार है हिन्दी ।।
'मधुशाला' की मधुरता है इसमें घुली हुई ।दिनकर के 'द्वापर' की हुंकार है हिन्दी ।।
भारत को समझना है तो जानिए इसको ।दुनिया भर में पा रही विस्तार है हिन्दी ।।
सबके दिलों को जोड़ने का काम कर रही ।देश का स्वाभिमान है, आधार है हिन्दी ।।

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विकास कुमार गर्ग