मेरी कलम से

Monday, December 6, 2010

ये डीग्री भी लेलो, ये नौकरी भी लेलो

ये डीग्री भी लेलो, ये नौकरी भी लेलो

ये डीग्री भी लेलो, ये नौकरी भी लेलो,

भले छीन लो मुझसे USA का विसामागर मुझको लौटा दो वो क्वालेज का कन्टीन,वो चाय का पानी, वो तीखा समोसा……….
कडी धूप मे अपने घर से निकलना,वो प्रोजेक्ट की खातीर शहर भर भटकना,वो लेक्चर मे दोस्तों की प्रोक्झी लगाना,वो सर को चीढाना ,वो एरोप्लेन उडाना,वो सबमीशन की रातों को जागना जगाना,वो ओरल्स की कहानी, वो प्रक्टीकल का किस्सा…..बीमारी का कारण दे के टाईम बढाना,
वो दुसरों के Assignments को अपना बनाना,वो सेमीनार के दिन पैरो का छटपटाना,वो WorkShop मे दिन रात पसीना बहाना,
वो Exam के दिन का बेचैन माहौल,पर वो मा का विश्वास – टीचर का भरोसा…..वो पेडो के नीचे गप्पे लडाना,वो रातों मे Assignments Sheets बनाना,
वो Exams के आखरी दिन Theater मे जाना,वो भोले से फ़्रेशर्स को हमेशा सताना,Without any reason, Common Off पे जाना,टेस्ट के वक्त Table me मे किताबों को रखना,
ये डीग्री भी लेलो, ये नौकरी भी लेलो,भले छीन लो मुझसे USA का विसामगर मुझको लौटा दो वो क्वालेज का कन्टीन

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विकास कुमार गर्ग