मेरी कलम से

Tuesday, August 2, 2011

समझ नहीं आता

कभी जमीं तो कभी आसमा समझ में नहीं आता

इस दिल का ठिखाना भी समझ में नहीं आता
मेरी आँखे आपके यादो का चिराग तो नहीं 
क्यों आये सिर्फ आप ही नज़र समझ में नहीं आता 
चाहे अनचाहे मैं आपको याद किया करता हूँ 
ये आदत है या जरुरत समझ में नहीं आता 
पागल सा बनकर रह गया हु कुछ सोच सोच कर
पहले हंसू या रोऊ कुछ समझ में नहीं आता

विकास

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना, बहुत खूबसूरत प्रस्तुति.

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विकास कुमार गर्ग