जागते हैं तन्हा रातो में, खोते है दिल उनकी बातो मे, मिली नहीं दिल की मंजिल आज तक, क्योकि दर्द ही दर्द लिखा है इन हाथो में!!! Email : gargvikash23@gmail.com, http://vikasgarg23.blogspot.com/
मेरी कलम से
Wednesday, August 31, 2011
Friday, August 26, 2011
क्या भारत गरीब है ?
“दर्द होता रहा छटपटाते रहे,
आई ने॒ से सदा चोट खाते रहे,
वो वतन बेचकर मुस्कुराते रहे
हम वतन के लिए॒ सिर कटाते रहे”
हम वतन के लिए॒ सिर कटाते रहे”
280 लाख करोड़ का सवाल है ...
भारतीय गरीब है लेकिन भारत देश कभी गरीब नहीं रहा" ये कहना है स्विस बैंक के डाइरेक्टर का.
स्विस बैंक के डाइरेक्टर ने यह भी कहा है कि भारत का लगभग 280 लाख करोड़ रुपये उनके स्विस बैंक में जमा है. ये रकम इतनी है कि भारत का आने वाले 30 सालों का बजट बिना टैक्स के बनाया जा सकता है.
भारतीय गरीब है लेकिन भारत देश
स्विस बैंक के डाइरेक्टर ने यह भी कहा है कि भारत का लगभग 280 लाख करोड़ रुपये उनके स्विस बैंक
या यूँ कहें कि 60 करोड़ रोजगार के अवसर दिए जा सकते है. या यूँ भी कह सकते है कि भारत के कि सी भी गाँव से दिल्ली तक 4 लेन रोड बनाया जा सकता है.
ऐसा भी कह सकते है कि 500 से ज् यादा सामाजिक प्रोजेक्ट पूर्ण किये जा सकते है. ये रकम इतनी ज् यादा है कि अगर हर भारतीय को 2000 रुपये हर महीने भी दिए जा ये तो 60 साल तक ख़त्म ना हो. यानी भारत को किसी वर्ल्ड बैंक से लोन लेने कि कोई जरुरत नहीं ह ै. जरा सोचिये ... हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और नोकरशाहों ने कै से देश को लूटा है और ये लूट का सिलसिला अभी तक 2011 तक जारी है. इस सिलसिले को अब रोकना बहुत ज् यादा जरूरी हो गया है. अंग्रेजो ने हमारे भारत पर करीब 200 सा लो तक राज करके करीब 1 लाख करो ड़ रुपये लूटा. मगर आजादी के केवल 64 सालों में हमारे भ्रष्ट राजनेताओं ने 280 लाख करोड़ लूटा है. एक तरफ 200 साल में 1 लाख करोड़ है और दूसरी तरफ केवल 64 सालों में 280 लाख करोड़ है. यानि हर साल लगभग 4.37 लाख करोड़, या हर मही ने करीब 36 हजार करोड़ भारतीय मुद्रा स्विस बैंक में इन भ्रष्ट लोगों द्वारा जमा करवाई गई है.
भारत को किसी वर्ल्ड बैंक के लो न की कोई दरकार नहीं है. सोचो की कितना पैसा हमारे भ्रष्ट रा जनेताओं और उच्च अधिकारीयों ने ब्लाक करके रखा हुआ है.
हमे भ्रस्ट राजनेताओं और भ्रष्ट अधिकारीयों के खिलाफ जाने का प ूर्ण अधिकार है.हाल ही में हुवे घोटालों का आप सभी को पता ही है - CWG घोटाला, २ जी स्पेक्ट्रुम घोटाला , आदर्श होउसिंग घोटाला,
और ना जाने कौन कौन से घोटा ले अभी उजागर होने वाले है .... ....
ऐसा भी कह सकते है कि 500 से ज्
भारत को किसी वर्ल्ड बैंक के लो
हमे भ्रस्ट राजनेताओं और भ्रष्ट
और ना जाने कौन कौन से घोटा
Wednesday, August 17, 2011
लौट आना
शाम होने से पहले लौट आना
किसी के नाम होने से पहले लौट आना
हम तो अब भी आप के इंतजार में हैं
अंजान होने से पहले लौट आना
सुबह शाम रहती है आप के दीदार की उम्मीद
दिन ख़तम होने से पहले लौट आना
अगर न लौट पाओ तो बस इतना कर देना
मेरी आखरी साँस लेने से पहले लौट आना
शाम होने से पहले लौट आना
किसी के नाम होने से पहले लौट आना
विकास
Sunday, August 14, 2011
अन्ना हजारे का पत्र मनमोहन सिंह के नाम
डॉ. मनमोहन सिंह 14.08.2011
प्रधानमंत्री
भारत सरकार
नई दिल्ली
प्रधानमंत्री
भारत सरकार
नई दिल्ली
मुझे यह पत्र आपको बेहद अफसोस के साथ लिखना पड़ रहा है। मैंने 18 जुलाई 2011 को लिखे एक पत्र में आपको कहा था कि अगर सरकार संसद में एक सख्त लोकपाल बिल लाने का अपना वादा पूरा नहीं करती है तो मैं 16 अगस्त से फिर से अनिश्चिकालीन उपवास शुरू करूंगा. मैंने कहा था कि इस बार हमारा अनशन तब तक जारी रहेगा जब तक 'जनलोकपाल बिल' के तमाम प्रावधान डालकर एक सख्त और स्वतंत्र लोकपाल बिल संसद में नहीं लाया जाता. जंतर मंतर पर अनशन करने के लिए, हमने 15 जुलाई 2011 को पत्र लिखकर आपकी सरकार से अनुमति मांगी थी. उस दिन से लेकर आज तक हमारे साथी दिल्ली पुलिस के अलग-अलग थानों, दिल्ली नगर निगम, एनडीएमसी, सीपीडब्ल्यू डी, और शहरी विकास मंत्रालय के लगभग हर रोज चक्कर काट रहे हैं. अब हमें बताया गया है कि हमें केवल तीन दिन के लिए उपवास की अनुमति दी जा सकती है. मुझे समझ में नहीं आता कि लोकशाही में अपनी बात कहने के लिए इस तरह की पाबन्दी क्यों? किस कानून के तहत आप इस तरह की पाबन्दी लगा सकते हैं? इस तरह की पाबन्दी लगाना संविधान के खिलाफ हैं और उच्चतम न्यायालय के तमाम निर्देशों की अवमानना हैं. जब हम कह रहे हैं कि हम अहिंसापूर्वक, शांतिपूर्वक अनशन करेंगे, किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे तो यह तानाशाही भरा रवैया क्यों? देश में आपातकाल जैसे हालात बनाने की कोशिश क्यों की जा रही है?
संविधान में साफ-साफ लिखा है कि शांतिपूर्वक इकट्ठा होकर, बिना हथियार के विरोध प्रदर्शन करना हमारा मौलिक अधिकार है. क्या आप और आपकी सरकार हमारे मौलिक अधिकारों का हनन नहीं कर रहे? जिन अधिकारों और आज़ादी के लिए हमारे क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों ने कुर्बानी दी, स्वतंत्रता दिवस के दिन पहले क्या आप उसी आज़ादी को हमसे नहीं छीन रहे हैं? मैं सोच रहा हूं कि 65 वें स्वतंत्रता दिवस पर आप क्या मुंह लेकर लाल किले पर ध्वज फहराएंगे?
पहले हमें जंतर मंतर की इजाज़त यह कहकर नहीं दी गई कि हम पूरी जंतर मंतर रोड को घेर लेंगे और बाकी लोगों को प्रदर्शन करने की जगह नहीं मिलेगी. यह सरासर गलत है क्योंकि पिछली बार हमने जंतर मंतर रोड का केवल कुछ हिस्सा इस्तेमाल किया था. फिर भी हमने आपकी बात मानी, और चार नई जगहों का सुझाव दिया- राजघाट, वोट क्लब, रामलीला मैदान और शही पार्क. रामलीला मैदान के लिए तो हमें दिल्ली नगर निगम से भी अनुमति मिल गई थी लेकिन आपकी पुलिस ने इस मुद्दे पर कई दिन भटकाने के बाद चारों जगहों के लिए मना कर दिया. मना करने के पीछे एक भी जगह के लिए कोई वाजिब कारण नहीं था. सिर्फ मनमानी भरा रवैया था. हमने कहा आप दिल्ली के बीच कोई भी ऐसा स्थान दे दीजिए जो मेट्रो और बसों से जुड़ा हो, अंततः हमें जे.पी. पार्क दिखाया गया, जो हमने मंजूर कर लिया. अब आपकी पुलिस कहती है कि यह भी केवल तीन दिन के लिए दिया जा सकता है. क्यों? इसका भी कोई कारण नहीं बताया जा रहा. माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेशों में साफ-साफ कहा है कि सरकार मनमाने तरीके से लोगों के इस मौलिक अधिकार का हनन नहीं कर सकती.
क्या इन सबसे तानासाही की गंध नहीं आती? संविधान के परखच्चे उड़ाकर, जनतंत्र की हत्या कर, जनता के मौलिक अधिकारों को रौंदना क्या आपको शोभा देता है?
लोग कहते हैं कि आपकी सरकार आज़ादी के बाद की सबसे भ्रष्ट सरकार है. हालांकि मेरा मानना है कि हर अगली सरकार पिछली सरकार से ज्यादा भ्रष्ट होती है. लेकिन भ्रश्टाचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाने वालो को कुचलना, यह आपके समय में कुछ ज्यादा ही हो रहा है. स्वामी रामदेव के समर्थकों की सोते हुए आधी रात में पिटाई, पुणे के किसानों पर गोलीबारी जैसे कितने ही उदाहरण हैं जो आपकी सरकार के इस चरित्र का नमूना पेश करते हैं. यह बहुत चिंता का विषय है.
हम आपको संविधान की आहूति नहीं देने देंगे. हम आपको जनतंत्र का गला नहीं घोंटने देंगे. यह हमारा भारत है. इस देश के लोगों का भारत. आपकी सरकार तो आज है, कल हो न हो.
बड़े खेद की बात है कि आपके इन ग़लत कामों की वजह से ही अमेरिका के हमारे लोकतंत्र के आंतरिक मामलों में दखल देने की हिम्मत हुई. भारत अपने जनतांत्रिक मूल्यों की वजह से जाना जाता रहा है. लेकिन अंतराष्ट्रीय स्तर पर आज उन मूल्यों को ठेस पहुंची है. यह बहुत ही दुख की बात है.
मैं यह पत्र इस उम्मीद से आपको लिख रहा हूं कि आप हमारे मौलिक अधिकारों की रक्षा करेंगे. क्या भारत का प्रधानमंत्री दिल्ली के बीच अनशन के लिए हमें कोई जगह दिला सकता है? आज यह सवाल मैं आपके सामने खड़ा करता हूं.
आपकी उम्र 79 साल है. देश के सर्वोच्च पद पर आप आसीन हैं. जिंदगी ने आपको सब कुछ दिया. अब आपको जिंदगी से और क्या चाहिए. हिम्मत कीजिए और कुछ ठौस कदम उठाइए.
मैं और मेरे साथी, देश के लिए अपना जीवन कुर्बान करने के लिए तैयार हैं. 16 अगस्त से अनशन तो होगा. लाखों लोग देश भर में सड़कों पर उतरेंगे. यदि हमारे लोकतंत्र का मुखिया भी अनशन के लिए कोई स्थान देने में असमर्थ रहता है तो हम गिरफ्तारी देंगे और अनशन जेल में होगा.
संविधान और लोकतंत्र की रक्षा करना आपका परम कर्तव्य है. मुझे उम्मीद है कि आप मौके की नज़ाकत को समझेंगे और तुरंत कुछ करेंगे.
भवदीय,
अन्ना हज़ारे
Wednesday, August 10, 2011
देश की सबसे बड़ी समस्या
आज़ादी का मतलब
हिन्दुस्तान हमारा है
आज़ादी पर मर मिट जाना
एक अरब को प्यारा है
मित्रो! आज़ादी का मतलब
निर्भय भारत-माता है
आज़ादी का अर्थ दूसरा
भारत भाग्य-विधाता है
न जाने आज देश कितनी ही समस्याओ से गुजर रहा है पर इस देश की सबसे बड़ी समस्या और कुछ नही बस अपने ही मन से देश के लिए प्यार का ख़तम हो जाना है. हम केवल अपने देश से बहार ही देखते है की वह क्या है, बस यही सोचते है की यह कुछ नही है. बस कैसे भी मौका लगे और हम विदेश चले जाये, यही खव्वाब लेकर हम बड़े होते है. "हम लाये है तूफ़ान से कश्ती निकल के , इस देश को रखना मेरे बच्चो संभल के " हमारे महापुरुषों की ये पंक्तिया हम हर २६ जनवरी और १५ अगस्त को सुनते है और २७ जनवरी तथा १६ अगस्त को भूल जाते हैI हमारे महापुरुष शायद ज्यादा दूरदर्शी नही थे, क्योकि अगर होते तो उन्हें पता होता की जिन हाथो में वो देश को सोप कर जा रहे है क्या वो हाथ इस ज़िम्मेदारी को उठा पायेगे. आज देश को सँभालने की जब भी बात आती है तो एक ही बात हमारी जुबा पे आती है कि इस देश ने आखिर हमे दिया क्या है, लेकिन हम अपने आप से कभी ये नही पूछते कि हमने आखिर इस देश को क्या दिया. बस यही देखते है की वो देश के लिए कुछ नही कर रहा तो मैं भी क्यों करू. पर शुरुआत तो किसी को करनी होगी. किसी एक को तो महात्मा का चोला ओड़ना होगा. और शय ये काम वो आसानी से कर सकते है जिनके हाथो में देश की बागडोर है. क्योकि उन्हें हम अपना प्रतिनिधि मानते है. उन्हें इस देश को एकजुट करना होगा. प्रेम भाईचारे का भाव पैदा करना होगा. कुर्सी के लिए नही देश के लिए कुछ कर दिखाना होगा. देश का क़ानून है कि अगर आपका कोई आपराधिक प्रमाण है तो आपको सरकारी नौकरी नही मिल सकती लेकिन वही देश की बागडोर सँभालने वाला यदि अपराधी भी है तो उस से कोई नही पूछता, बस दे दिया जाता है देश उसके हाथो में और ज्यादा छलनी होने को. अतः हल तो केवल एक ही है कि पहले हम खुद को बदले, एक होकर, एक आवाज़ उठाये उन दुश्मनों के खिलाफ जो इसी देश के होकर इसे ही खोखला बना रहे है. अपना ज़मीर हम इस कदर पवित्र कर ले कि उन जैसो के हाथ में देश न जाने दे जो नापाक इरादे रखते है. संघर्षशील और अच्छी सूझबूझ रखने वाली एक युवाशक्ति की ज़रुरत है. ऐसे युवाओ को आगे लाये, अपने वोट का सही उपयोग करे, वो मेरा मित्र है वो मेरा पडोसी है ये न सोच कर वोट उसे दे जो सही मायनो में इस देश कि बागडोर सँभालने के लायक हो. ऐसे युवाओ को देश देकर देखे, देश तो आगे बढेगा ही और हमें भी आगे बढाएगा और फिर पूछना अपने आप से कि आखिर हमारे देश ने हमें दिया क्या है.
भारत माँ के अमर सपूतों,
हिन्दुस्तान हमारा है
आज़ादी पर मर मिट जाना
एक अरब को प्यारा है
मित्रो! आज़ादी का मतलब
निर्भय भारत-माता है
आज़ादी का अर्थ दूसरा
भारत भाग्य-विधाता है
न जाने आज देश कितनी ही समस्याओ से गुजर रहा है पर इस देश की सबसे बड़ी समस्या और कुछ नही बस अपने ही मन से देश के लिए प्यार का ख़तम हो जाना है. हम केवल अपने देश से बहार ही देखते है की वह क्या है, बस यही सोचते है की यह कुछ नही है. बस कैसे भी मौका लगे और हम विदेश चले जाये, यही खव्वाब लेकर हम बड़े होते है. "हम लाये है तूफ़ान से कश्ती निकल के , इस देश को रखना मेरे बच्चो संभल के " हमारे महापुरुषों की ये पंक्तिया हम हर २६ जनवरी और १५ अगस्त को सुनते है और २७ जनवरी तथा १६ अगस्त को भूल जाते हैI हमारे महापुरुष शायद ज्यादा दूरदर्शी नही थे, क्योकि अगर होते तो उन्हें पता होता की जिन हाथो में वो देश को सोप कर जा रहे है क्या वो हाथ इस ज़िम्मेदारी को उठा पायेगे. आज देश को सँभालने की जब भी बात आती है तो एक ही बात हमारी जुबा पे आती है कि इस देश ने आखिर हमे दिया क्या है, लेकिन हम अपने आप से कभी ये नही पूछते कि हमने आखिर इस देश को क्या दिया. बस यही देखते है की वो देश के लिए कुछ नही कर रहा तो मैं भी क्यों करू. पर शुरुआत तो किसी को करनी होगी. किसी एक को तो महात्मा का चोला ओड़ना होगा. और शय ये काम वो आसानी से कर सकते है जिनके हाथो में देश की बागडोर है. क्योकि उन्हें हम अपना प्रतिनिधि मानते है. उन्हें इस देश को एकजुट करना होगा. प्रेम भाईचारे का भाव पैदा करना होगा. कुर्सी के लिए नही देश के लिए कुछ कर दिखाना होगा. देश का क़ानून है कि अगर आपका कोई आपराधिक प्रमाण है तो आपको सरकारी नौकरी नही मिल सकती लेकिन वही देश की बागडोर सँभालने वाला यदि अपराधी भी है तो उस से कोई नही पूछता, बस दे दिया जाता है देश उसके हाथो में और ज्यादा छलनी होने को. अतः हल तो केवल एक ही है कि पहले हम खुद को बदले, एक होकर, एक आवाज़ उठाये उन दुश्मनों के खिलाफ जो इसी देश के होकर इसे ही खोखला बना रहे है. अपना ज़मीर हम इस कदर पवित्र कर ले कि उन जैसो के हाथ में देश न जाने दे जो नापाक इरादे रखते है. संघर्षशील और अच्छी सूझबूझ रखने वाली एक युवाशक्ति की ज़रुरत है. ऐसे युवाओ को आगे लाये, अपने वोट का सही उपयोग करे, वो मेरा मित्र है वो मेरा पडोसी है ये न सोच कर वोट उसे दे जो सही मायनो में इस देश कि बागडोर सँभालने के लायक हो. ऐसे युवाओ को देश देकर देखे, देश तो आगे बढेगा ही और हमें भी आगे बढाएगा और फिर पूछना अपने आप से कि आखिर हमारे देश ने हमें दिया क्या है.
भारत माँ के अमर सपूतों,
पथ पर आगे बढ़ाते जाना.
पर्वत नदियाँ और समंदर,
हंस कर पार सभी कर जाना.
पर्वत नदियाँ और समंदर,
हंस कर पार सभी कर जाना.
आज़ादी का बिगुल
आज़ादी का बिगुल बजा जब,
चमका गगन में तारा था,
हुआ अचंभित सकल विश्व,
वह भारतवर्ष हमारा था.
सुनी कहानी आज़ादी की,
हमने अपनी नानी से,
देश की सत्ता पायी हमने,
वीरों की कुर्बानी से.
देश हो गैरों की मुट्ठी में,
हमको नहीं गंवारा था,
हुआ अचंभित सकल विश्व,
वह भारतवर्ष हमारा था.
बनते ही गणतंत्र देश का,
विश्व में ऊँचा नाम हुआ,
छंटा अँधेरा, निकला सूरज,
पूरा हर अरमान हुआ.
शत -शत नमन वीरों को,
जिनके लहू ने इसे संवारा था,
हुआ अचंभित सकल विश्व,
वह भारतवर्ष हमारा था.
हम हैं चाहे नन्हे -मुन्ने,
सपने लेकिन हैं बड़े -बड़े.
तेरी रक्षा सदा करेंगे,
भारत माँ हम खड़े -खड़े.
लहरायेगा सदा तिरंगा,
यही संकल्प हमारा था,
हुआ अचंभित सकल विश्व,
वह भारतवर्ष हमारा था.
वह भारतवर्ष हमारा था.
सुनी कहानी आज़ादी की,
हमने अपनी नानी से,
देश की सत्ता पायी हमने,
वीरों की कुर्बानी से.
देश हो गैरों की मुट्ठी में,
हमको नहीं गंवारा था,
हुआ अचंभित सकल विश्व,
वह भारतवर्ष हमारा था.
बनते ही गणतंत्र देश का,
विश्व में ऊँचा नाम हुआ,
छंटा अँधेरा, निकला सूरज,
पूरा हर अरमान हुआ.
शत -शत नमन वीरों को,
जिनके लहू ने इसे संवारा था,
हुआ अचंभित सकल विश्व,
वह भारतवर्ष हमारा था.
हम हैं चाहे नन्हे -मुन्ने,
सपने लेकिन हैं बड़े -बड़े.
तेरी रक्षा सदा करेंगे,
भारत माँ हम खड़े -खड़े.
लहरायेगा सदा तिरंगा,
यही संकल्प हमारा था,
हुआ अचंभित सकल विश्व,
वह भारतवर्ष हमारा था.
Friday, August 5, 2011
जिन्दगी
बादलों पे पाऊँ रख के आसमान को छू लिया
जो कभी किया ना था वो आज मैंने किया
रही ना कोई आरजू, पाया है मैंने वो सुकून
ख्वाहिशों के हाथ में सोंप दी है ज़िन्दगी
खूब है, ख़ास है, अब खवाब सी है ज़िन्दगी
हर पल लगता है एक नया विश्वास है जिन्दगी
Tuesday, August 2, 2011
समझ नहीं आता
कभी जमीं तो कभी आसमा समझ में नहीं आता
इस दिल का ठिखाना भी समझ में नहीं आता
मेरी आँखे आपके यादो का चिराग तो नहीं
क्यों आये सिर्फ आप ही नज़र समझ में नहीं आता
चाहे अनचाहे मैं आपको याद किया करता हूँ
ये आदत है या जरुरत समझ में नहीं आता
पागल सा बनकर रह गया हु कुछ सोच सोच कर
पहले हंसू या रोऊ कुछ समझ में नहीं आता
विकास
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