मेरी कलम से

Saturday, April 2, 2011

दर्द का रिश्ता अज़ीज़ था

ख़ुश-फ़हमियों को दर्द का रिश्ता अज़ीज़ था
काग़ज़ की नाव थी, जिसे दरिया अज़ीज़ था
ऐ! तंगी-ए-दयारे-तमन्ना! बता मुझे
वो पाँव क्या हुए जिन्हें सहरा अज़ीज़ था
पूछो न कुछ कि शहर में तुम हो नए-नए
इक दिन मुझे भी सैरो-तमाशा अज़ीज़ था
इक रस्मे बेवफ़ाई थी, वह भी हुई तमाम
वह यारे-बेवफ़ा मुझे कितना अज़ीज़ था
यादें मुझे न ज़ुर्मे-तअल्लुक़ की दें सज़ा
मेरा कोई न मैं ही किसी का अज़ीज़ था

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
विकास कुमार गर्ग