मेरी कलम से

Friday, April 1, 2011

दर्द

Dardहम दर्द को दबाते रहे, ये फूट फूट निकलता रहा                             
कभी चेहरे से झलकता रहा, कभी आँखों से छलकता रहा.
हम हर मोड़ पर पुकारा किए और वो हमसे बचके चलता रहा.
कितनी दफ़ा गिरे हम राहों मे वो बस दूर से तकता रहा.
हमेशा ख्वाब सा ही बनकर रहा मेरे लिए वो,
मैं हरदम पकड़ता रहा, वो ओस सा पिघलता रहा.
हम दर्द को दबाते रहे, ये फूट फूट निकलता रहा
कभी चेहरे से झलकता रहा, कभी आँखों से छलकता रहा.

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विकास कुमार गर्ग