मेरी कलम से

Friday, March 18, 2011

होली के दिन सबका चरित्र बदल जाता है

घर से नेकर और कैप पहनकर
निकले घर से बाहर निकले लेने किराने का सामान
तो सामने से आता दिखा फंदेबाज
और बिना देख आगे बढ़ गया किया नही मान
तब चिल्ला कर आवाज दी उसे
”क्यों आँखें बंद कर जा रहे हो
अभी तो दोपहर है
बिना हमें देखे चले जा रहे हो
क्या अभी से ही लगा ली है
या लुट गया है सामान’

देखकर चौंका फंदेबाज
”आ तो तुम्हारे घर ही रहा हूँ
यह देखने कल कहीं भाग तो नहीं जाओगे
वैसे पता है तुम अपने ब्लोग पर
कल भी कहर बरपाओगे
पर यह क्या होली का हुलिया है
कहाँ है धोती और टोपी
पहन ली नेकर और यह अंग्रेजी टोपी
वैसे बात करते हो संस्कृति और संस्कार की
पर भूल गए एक ही दिन में सम्मान”
हंसकर बोले
”होली के दिन सभी लोगों का
चरित्र बदल जाता है
समझदार आदमी भी बदतमीजी पर उतर आता है
बचपन में देखा है किस तरह
कांटे से लोगों की टोपी उडाई जाती थी
और धोती फंसाई जाती थी
तब से ही तय किया एक दिन
अंग्रेज बन जायेंगे
किसी तरह अपना बचाएंगे सम्मान
वैसे भी पहनने और ओढ़ने से
संस्कार और संस्कृति का कोई संबंध नहीं
मजाक और बदतमीजी में अंतर होता है
हम धोती पहने या नेकर
देशी पहने या विदेशी टोपी
लिखेंगे तो हास्य कविता
बढाएंगे हिन्दी का सम्मान

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विकास कुमार गर्ग